जब हम डरावनी चीज़ को देखते हैं तो दिल की धड़कन क्यों बढ़ जाती है?
जब हम किसी डरावनी चीज़ को देखते हैं तो दिल की धड़कन क्यों बढ़ जाती है और रोंगटे खड़े क्यों हो जाते हैं?
हमारा
मस्तिष्क एक केन्द्रीय कम्प्यूटर की तरह शरीर के सारे कार्यों को संचालित
करता है। यह काम नर्वस सिस्टम के मार्फत होता है। पूरे शरीर में नाड़ियों
यानी नर्व्स का का एक जाल है। मस्तिष्क से हमारी रीढ़ की हड्डी जुड़ी है, जिससे
होकर धागे जैसी नाड़ियाँ शरीर के एक-एक हिस्से तक जाती हैं। मस्तिष्क से
निकलने वाला संदेश शरीर के हर अंग तक जाता है। मसलन कभी आपका हाथ
दुर्घटनावश जल जाय तो हाथ की त्वचा से जुड़ी नर्व्स दर्द का संदेश मस्तिष्क
तक भेजती है। जवाब में मस्तिष्क मसल्स को संदेश देता है कि हाथ को खींचो।
यह सब बेहद तेजी से होता है। नर्वस सिस्टम का एक हिस्सा शरीर की साँस लेने, भोजन को पचाने, पसीना निकालने, काँपने
जैसी तमाम क्रियाओं का संचालन करता रहता है। आपको उसमें कुछ भी करने की
ज़रूरत नहीं होती है। इसे ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम कहते हैं। इस सिस्टम के दो
हिस्से होते हैं। सिम्पैथेटिक और पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम। जब आप कोई
डरावनी चीज़ देखते हैं तब सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम हृदट की गति को बढ़ा
देता है। उसका उद्देश्य शरीर के सभी अंगों तक ज्यादा रक्त पहुँचाना होता
है। साथ ही यह किडनी के ऊपर एड्रेनल ग्लैंड्स से एड्रेनालाइन हार्मोन को
रिलीज़ करता है, जिससे
मसल्स को अतिरिक्त शक्ति मिलती है। यह इसलिए कि या तो आपको लड़ना है या
भागना है। दोनों काम के लिए फौरी ऊर्जा मिल सके। इसके अलावा शरीर की मसल्स
शरीर के रोयों को उत्तेजित करती है ताकि शरीर में गर्मी आए। यह काम सर्दी
लगने पर भी होता है।
भानगढ़ को देश की सबसे डरावनी जगह क्यों कहते हैं?
भानगढ़
राजस्थान के अलवर जिले का एक शहर है जहाँ अब सिर्फ ऐतिहासिक खंडहर हैं।
यहाँ कोई नहीं रहता। इसके मुख्य द्वार पर भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग
की ओर से एक बोर्ड लगा है कि इस जगह पर सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के
बाद रुकना प्रतिबंधित है। इसका कारण यह है कि आबादी न होने के कारण यहाँ
जंगली जानवरों का खतरा है। किंवदंतियाँ इसे भुतहा शहर बताती हैं। भानगढ़ का
किला आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573
में बनवाया था। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के
नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश
बना लिया। मुगलों के कमज़ोर पड़ने पर 1720 में आमेर के राजा सवाई जयसिंह ने भानगढ़ पर कब्जा कर लिया। इस समूचे इलाके में पानी की कमी तो थी ही 1783
के अकाल में यह किला पूरी तरह उजड़ गया। किले के अंदर की इमारतों में से
किसी की भी छत नहीं बची है। लेकिन इसके मंदिर लगभग पूरी तरह सलामत हैं। इन
मंदिरों की दीवारों और खंभों पर की गई नफीस नक्काशी से अंदाजा लगाया जा
सकता है कि यह समूचा किला कितना खूबसूरत और भव्य रहा होगा।
भानगढ़
के बारे में जो किस्से सुने जाते हैं उनके मुताबिक इस इलाके में सिंघिया
नाम का एक तांत्रिक रहता था। उसका दिल भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती पर आ
गया। एक दिन तांत्रिक ने राजकुमारी की एक दासी को बाजार में इत्र खरीदते
देखा। सिंघिया ने इत्र पर टोटका कर दिया ताकि राजकुमारी उसे लगाते ही
तांत्रिक की ओर खिंची चली आए। लेकिन रत्नावली को इसका पता लग गया। उसने
शीशी एक चट्टान पर दे मारी। चट्टान को ही तांत्रिक से प्रेम हो गया और वह
सिंघिया की ओर लुढकने लगी। चट्टान के नीचे कुचल कर मरने से पहले तांत्रिक
ने शाप दिया कि मंदिरों को छोड़ कर समूचा किला जमींदोज हो जाएगा और
राजकुमारी समेत भानगढ़ के सभी बाशिंदे मारे जाएंगे। आसपास के गांवों के लोग
मानते हैं कि सिंघिया के शाप की वजह से ही किले के अंदर की सभी इमारतें
रातोंरात ध्वस्त हो गईं। उनका विश्वास है कि रत्नावती और भानगढ़ के बाकी
निवासियों की रूहें अब भी किले में भटकती हैं और रात के वक्त इन खंडहरों
में जाने की जुर्रत करने वाला कभी वापस नहीं आता।
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दुनिया में सबसे पहले कपड़े किसने पहने?
पुरातत्ववेत्ताओं और मानवविज्ञानियों के अनुसार सबसे पहले परिधान के रूप में पत्तियों, घास-फूस, जानवरों की खाल और चमड़े का इस्तेमाल हुआ था। दिक्कत यह है कि इस प्रकार की पुरातत्व सामग्री मिलती नहीं है। पत्थर, हड्डियाँ और धातुओं के अवशेष मिल जाते हैं, जिनसे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, पर परिधान बचे नहीं हैं। पुरातत्ववेत्ताओं को रूस की गुफाओं में हड्डियों और हाथी दांत से बनी सिलाई करने वाली सूइयाँ मिली हैं, जो तकरीबन 30,000 साल ईपू की हैं। मानव विज्ञानियों ने कपड़ों में मिलने वाली जुओं का जेनेटिक विश्लेषण भी किया है, जिसके
अनुसार इंसान ने करीब एक लाख सात हजार साल पहले परिधान पहनना शुरू किया
होगा। इसकी ज़रूरत इसलिए हुई होगी क्योंकि अफ्रीका के गर्म इलाकों से उत्तर
की ओर गए इंसान को सर्द इलाकों में बदन ढकने की ज़रूरत हुई होगी। कुछ
वैज्ञानिक परिधानों का इतिहास पाँच लाख साल पीछे तक ले जाते हैं। बहरहाल
अभी स विषय पर अनुसंधान चल ही रहा है।
.ओके माने क्या?
ओके बोलचाल की अंग्रेजी का शब्द है। इसका मतलब है स्वीकृति, पर्याप्त, ठीक-ठाक वगैरह। यह संज्ञा और क्रिया दोनों रूपों में इस्तेमाल होता है। क्या यह ओके है? गाड़ी ओके है? बॉस ने ओके कर दिया वगैरह। मोटे तौर पर ऑल करेक्ट माने ओके।
जयपुर को पिंक सिटी यानी गुलाबी शहर कहते हैं। जयपुर की स्थापना 1727 में महाराज सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी। उनकी राजधानी पहले आमेर में थी, जहाँ
पानी की किल्लत थी और जनसंख्या बढ़ रही थी। इस शहर की स्थापना ऐसे दौर में
हुई जब भारत में नगर नियोजन एक नया विषय रहा होगा। इसकी स्थापना में
ज्यामित्य सूत्र और गणित की कसौटी का ध्यान रखा गया था। लेकिन शुरू में यह
शहर गुलाबी नहीं था। इसे गुलाबी रंग मिला सवाई रामसिंह द्वितीय के शासन काल
में। इंग्लैंड के प्रिंस ऑफ वेल्स के स्वागत में 1853 में शहर को गुलाबी रंग से रंगा गया।
राष्ट्रपति भवन और संसद भवन कब बनाए गए?
सन 1911
में घोषणा की गई कि भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई जाएगी।
मशहूर ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लैंडसीयर लुट्यन्स ने दिल्ली की
ज्यादातर नई इमारतों की रूपरेखा तैयार की। इसके लिए उन्होंने सर हरबर्ट
बेकर की मदद ली। जिसे आज हम राष्ट्रपति भवन कहते हैं उसे तब वाइसरॉयस हाउस
कहा जाता था। इसके नक्शे 1912 में बन गए थे, पर यह बिल्डिंग 1931 में पूरी हो पाई। संसद भवन की इमारत 1927 में तैयार हुई।
अरबी भाषा में नमस्कार के लिए क्या बोला जाता है?
सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द है मरहबा।
उन संगीत निर्देशकों के नाम जिन्होंने जोड़ी में काम किया?
Sहुस्नलाल-भगतराम, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनन्दजी, नदीम-श्रवण, सोनिक-ओमी, शिव-हरि, आनन्द-मिलिन्द, जतिन-ललित, विशाल-शेखर, दिलीप सेन-समीर सेन, सपन-जगमोहन, बसु-मनोहारी, शंकर-एहसान,लॉय (शंकर महादेवन, एहसान नूरानी और लॉय मेंडोंसा) की तिकड़ी।
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